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Ha maine waqt badalte dekhaa hai.

Hajaro ke iss meley maine kaiyo ko akele kahda dekha haii Ya hajaro ki bheed ko maine mery peche khada  khud ko akela dekhaa hai Un tamam logo ki khushnuma chehrey ke peche Jhoti muskaan ko dekha hai Ha... . . Ha shyd maine waqt badalte dekha hai . Unki masumiyt ko samajhdaari me To pyaar ko nafrat Or Unki umeedo or bhaavnaon ko patthar hote Dekhaa Hai Maine un katil halato se Apno ko marte hue dekha hai Ha . . Ha shyd Ha maine waqt badalte dekha hai . Ache ko bure me , Dheeme se tez ho , Ya safed ko kaaley me kabhi rang , kabhi chaal To kabhi insaan badalte dekha hai . Ha . Ha Ha shyd maine waqt ko badalte dekhaa haii . Kuch der ki mayusi ko gahrai khamoshi me  Or iss khaamoshi ko sannate me badalte dekha hai . . Ha  . Ha shyd........ . . Unki mulakato ko muskurahat , muskurahat ko pyaar Or pyaar ko ikaraar ko takraar Maine unke pyaar ke rishton ko , Yu pal bhar me badalte dekha haii . .
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Tum maan logi kya ?

Baatein to Bahot hai kahne ko .. Mager har baat jo main kahunga Tumse.. Tum maan logi kya ? Main ager kahu,, Ke duniya bhr ke liye main patthar sa hu.. Mager tumhare age maai kanch ho jata hu.. Aur mery ye asuu bus tumhare liye bahtey hai.. Toh tum maan logi kya ? Aur yun,, Toh ab mai tumse baatein bahot km.. Krney laga hoon, Or tumhe toh lagata bhi hoga.. Ki pal bhr ka pyaar tha, pal bhr mein badl gaya.. Mager ager main kahun, ki mai to buss tumhari  Batey sunna chahat hu jindagi bhar, Toh tum maan logi kya ? Batein to bahot haii kahne ko.. Mager her baat jo mai karunga.. Tum maan logi kya ? Mai kahun,, Ki main soya nahi hu kabse.. Buss raat bhar tumhe yaad krta hu.. To tum maan logi kya ? Mila tha tumse kabhi kuch pal ke liye.. Mager phir bhi tumhe her pall je bahr ke dekhne ka intzaar krta hu.. To tum maan logi kya ?  Yu to mai apni haqqet likhta hu humesha.. Tum ise mehzz ek khwab smjh kar mery praan logi kya.. Choed diye mrne ke armaan tery liye maine... Mai ye kahu..

Meri Ruhh ka Parinda..💫

हा अब इस रूह की ख्वाइश  जो इस जिस्म से उड़ना चाहती हैं करू तो क्या करूँ इसका  ये तुझ बिन न जीना चाहती है कोशिशे लाख कर ली हैं  मगर तुझ तक न पहुँची ये मन्नतें कर रहा हु मैं  मेरा खुदा सुनना नही चाहता पागलों सा हो गया अब मैं  जो रुक रहा हु हर डगर पर मुसाफ़िर हो गया हु मैं अपने रब को ढूंढ~ढूढ़ कर  हा अब इस रुह की ख्वाईश  उड़ना चाहती है ये जिस्म छोड़ कर  देखो पढ़ रहा वो जिसको थक गया ढूंढ कर  हा अब है सामने मेरे खुदा का एक मंजर... अधुरा रह गया हूं मैं अपने रब के मिलने पर...

JINDAGI EK KHULI KITAAB....💘

की जिंदगी अब हमने खुली किताब कर ली है  , हा खाता ये हुईं , हमसे हमने  "मोहब्बत "  तुमसे बेहिसाब कर ली है , ना यक़ीन हो तो जा के देख मेरी बीती जिंदगी में , हमने कितनों की जिंदगी एक ख़्वाब कर दी है , हा ग़लती बस इतनी सी है  , हमारी की हमने तुमसे  "मोह्हबत " बेहिसाब कर ली है , हा यु तो नासमझ नहीं हु मैं भी , लेकिन तेरे लिए ये ज़िन्दगी नादां कर ली है , अब उन   "चाँद , तारों , फूल , झरनों "  की तुमसे क्या तुलना दु , साला उन सब से ज्यादा तो "मोह्हबत" तो  हमने तुमसे बेहिसाब कर ली है , यू तो जिंदगी के "मायने " छीन लिए है तुमने , क्योंकि अब हमने तो झूठ बोलने वाले  " आइनों  " से भी  "मोह्हबत " बेहिसाब कर ली हैं , हा तुम ही थी एक जिसके आगे  , मैंने अपनी जिंदगी एक खुली किताब कर दी है , गलती बस इतनी सी थी , की मोह्हबत मैंने तुमसे बेहिसाब कर ली है ।

क्या ऐसा ही महसूस होता हैं...

मैं एक अर्से से जागा हु , और कुछ अर्सो का खोया  हा मुझे जब भी दिखता हैं , मेरा चाँद उससे लिपट कर बहूत रोया हु  यू तो हमारा चाँद "PRIVATE" हैं , लेकिन अभी भी मैं कही उसके ख़यालो में खोया हु , कोशिश पूरी हैं कि उसकी उलझने सुलझा दू × २ लेकिन उसके इज्जात के बिना, उस्से रूबरू होना जरूरी नही होता , गर ख्वाइशों के समंदर में गोते न खाता ये "मुसाफिर"  तो इश्के - सवार - ये - आशिक़ अपनी कश्ती संग किनारे पे होता ,  गौर फरमाएं... कभी-कभी लगता है मैं भी इश्क़ में डूब मरुँ ,  मगर क्या करूँ साहब इस इश्क़ की ख्वाइश का कोई समुंदर नहीं होता...!!

Ishq-ey-Khwaish

बेबस सी आँखें ,  ढूंड रही हैं तुमको , काश कि इन आँखों की दुनियां में ,  सिर्फ तुम ही तुम होते , मसला ये नहीं के तुम्हें भुला नही पा रहे, मसला ये है कि तुम्हे हम हॉसिल नाही कर पा रहें , आदत हो गयी तेरे प्यार में , मर- मर के जीने की हमें , अब तो कोई जिंदगी भी देने कोशिश करे , तो हम साफ मना कर देते है , सिर्फ इशारा ही काफी है ,  तफसील ज़रूरी नहीं , हम तुम ही काफी हैं , महफ़िल ज़रूरी नहीं , गिला तुमसे नहीं , शिकायत उस वक़्त से क्या करूँ जो मेरा कभी मेरा था ही नहीं ।।

Mai kon hu..? Mera naam kya..?

मैं कौन हूं मेरा नाम क्या ? उसकी जिंदगी में मेरा काम क्या ? मैं हु भविष्य तो उसका आज क्या ? है ये हक़ीक़त तो ख़्वाब क्या ? मेरी कोशिशें नाक़म क्यों ? मेरे अक्स पर कोई दाग़ क्या ? . . . है कुछ दर्द जो उसके ले सकूँ , एक शाम बस मिल जाये वो , ये जो लिख रहा वो मेरी भावना , जो न लिखा वो मेरा इश्क़ था ।